नई दिल्ली: दिल्ली में कर्मचारियों का ट्रांसफर पोस्टिंग सम्बंधी अध्यादेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर के दो हफ्ते में जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट के ओर से कहा गया है कि जो पदों पर अबैध तरीके से जिसकी नियुक्ती की गई हैं. आप पार्टी के कार्यकर्त्ता और विधायकों के पति-पत्नी नियुक्ति मामले में केंद्र को को जवाब दाखिल करने के लिए समय मिलेंगें. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच इस केस में सुनवाई कर रहे है.
दिल्ली सरकार के ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि यह अध्यादेश ‘‘कार्यकारी आदेश का असंवैधानिक इस्तेमाल” है जो शीर्ष अदालत और संविधान की मूल संरचना का ‘‘उल्लंघन” करने का प्रयास करता है. दिल्ली सरकार ने अध्यादेश को रद्द करने के अलावा इस पर अंतरिम रोक लगाने का भी अनुरोध किया है. जहां सुप्रीम कोर्ट ने बीती 11 मई को दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला दिया और साफ किया था कि दिल्ली सरकार ही दिल्ली के ऑफिसरो के ट्रांसफर और पोस्टिंग कर सकती है. कोर्ट के फैसले को आम आदमी पार्टी ने अपनी जीत बताया था, लेकिन ये ज्यादा दिन कायम नहीं रहा क्योंकि केंद्र सरकार ने देश की राजधानी क्षेत्र दिल्ली अध्यादेश ला कर बैकफूट ला दिया. इसी साल 2023 में ले आई.
केंद्र सरकार के अध्यादेश के अंतर्गत दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा आखिरी फैसला लेने का हक उपराज्यपाल को दिया. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023 के तहत दिल्ली में सेवा देने वाले अफसरों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण गठित किया गया है. इस प्राधिकरण के तीन सदस्य होंगे, जिनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव, दिल्ली के गृह प्रधान सचिव होंगे. दिल्ली के मुख्यमंत्री को इस प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया गया है. लेकिन ऑफिसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार उपराज्यपाल के पास रहेगा.