जयपुर: अशोक गहलोत की सरकार अब सेफ नज़र आ रही है. कल सचिन पायलट ने राहुल गांधी से मुलकात की थी. अब पायलट की कांग्रेस में वापसी हो रही है. आपको बता दें कुछ दिन पहले अशोक गहलोत ने एसओजी का नोटिस भिजवाया तो सचिन पायलट ने बागी रुख अपनाया. सरकार पर संकट आया तो गहलोत ने सचिन पायलट को बाहर का रास्ता का दिखाया था. अब सरकार बचाने का असली मौका आया तो कांग्रेस हाईकमान ने सचिन पायलट को मनाया है. एक महीने के इस सियासी ड्रामे का खेल अब ख़त्म होता नज़र आ रहा है. बता दें राजस्थान कांग्रेस के दो बड़े नेताओं अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तकरार तो विधानसभा चुनाव के पहले से ही चल रहा था. चुनाव में जीत मिलने के बाद जब पायलट की जगह गहलोत को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली तो खाई और गहरी होती गई. दूरियां इतनी बढ़ गईं कि सचिन पायलट पर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार गिराने की साजिश के आरोप लग गए. राजस्थान पुलिस की एसओजी ने पायलट से पूछताछ के लिए नोटिस भेजा तो उनके सब्र का बांध टूट गया और वो अपने समर्थक विधायकों को लेकर राजस्थान की सीमा पार गए. गहलोत सरकार पर संकट तो आया मगर उनकी तिकड़मबाजी से किसी तरह कांग्रेस की सरकार बची रही. लेकिन गहलोत की मुसीबत बढ़ाने का खामियाजा सचिन पायलट और उनके समर्थकों को भुगतना पड़ा.
14 जुलाई को जयपुर में कांग्रेस विधायक की तीसरी बैठक हुई. पार्टी के सार्वजनिक बुलावे पर भी सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक बैठक में नहीं पहुंचे. लिहाजा, गहलोत को उनके डिमोशन की पटकथा को मंजूरी मिल गई. सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया. प्रदेश अध्यक्ष पद भी उनसे छीन लिया गया. इसके अलावा गहलोत कैबिनेट के उनके दो मंत्रियों को भी हटा दिया गया. सचिन पायलट को सीधे तौर पर इस नुकसान के अलावा कुछ और डैमेज भी पहुंचा. दानिश अबरार, चेतन डूडी और रोहित वोहरा जैसे सचिन के साथी विधायक भी मुश्किल वक्त में गहलोत के साथ खड़े नजर आए. पायलट के साथी नेताओं से एनएसयूआई और सेवा दल की जिम्मेदारी भी छिन गई. यानी संगठन से लेकर सरकार तक में जितनी भी पकड़ पायलट की थी, वो सब चली गई. छवि का जो नुकसान हुआ वो अलग. अशोक गहलोत ने मीडिया के सामने उन पर बीजेपी के साथ मिलकर विधायकों की खरीदारी जैसे गंभीर इल्जाम लगाए.
हालांकि, अब जब सुलह का रास्ता निकल रहा है तो पायलट ने फिर से तमाम किस्म की हिस्सेदारी की मांग रखी है. पार्टी हाईकमान भी उनकी डिमांड पर राजी हो गया है और एक कमेटी का गठन कर दिया है. ऐसे में तमाम नुकसान झेलकर अंतत: पायलट ने ये जरूर साबित कर दिया है कि उनके सहयोग के बिना राजस्थान सरकार का स्थिर रहना मुमकिन नहीं है. अशोक गहलोत की ताकत पार्टी हाईकमान में ज्यादा मानी जाती है, लेकिन पायलट ने भी अपना असर साबित कर दिया है. पायलट का लौटना गहलोत के लिए सही या गलत. अशोक गहलोत भले ही राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हों लेकिन सचिन पायलट ने 18 विधायकों को अपने साथ लेकर उनकी सरकार को एकदम किनारे पर लाकर छोड़ दिया था. ऐसे में पार्टी हाईकमान के फैसले से उनकी सरकार को मजबूती जरूर मिलेगी. लेकिन जो खटास पार्टी नेताओं के बीच पैदा हुई है वहां मिठास भरना गहलोत के लिए बड़ी चुनौती जरूर रहेगी. इसके अलावा नैतिक तौर पर भी गहलोत के सामने कई सवाल खड़े होंगे. गहलोत ने सचिन पायलट को खुले तौर पर सरकार गिराने के लिए जिम्मेदार बताया. सबूत होने तक की बात कही. अब जबकि सुलह हो गई है तो कहा जा रहा है कि जांच नहीं की जाएगी. विपक्ष भी इसके आधार पर गहलोत को मॉरल ग्राउंड्स पर आइना दिखा सकता है. वहीं, इस पूरे घटनाक्रम से ये भी साबित होता नजर आ रहा है कि तमाम कोशिशों के बावजूद गहलोत सचिन पायलट को पार्टी से बाहर का रास्ता नहीं दिखा पाए हैं. बता दें कि पायलट के पद से हटते ही अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत एक्टिव हो गए थे जिसके बाद तमाम किस्म की अटकलें लगने लगी थीं. अब लेकिन सचिन पायलट ने गहलोत के बाद नेतृत्व मिलने की मुहर पार्टी हाईकमान से लगवा ली है. यानी वर्तमान भले ही अशोक गहलोत का सेफ हुआ हो, लेकिन भविष्य सचिन पायलट ने सुरक्षित कर लिया है. 14 अगस्त से शुरू होने जा रहे विधानसभा सत्र से पहले ही राजस्थान की सत्ता बचा ली है. फिलहाल तो गहलोत सरकार सेफ हो गयी है.